भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर में इन दिनों एक नई बहस छिड़ी हुई है — क्या भारत को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से automotive regulations बनाने चाहिए या फिर पश्चिमी देशों के मानकों को अपनाना जारी रखना चाहिए? इसी विषय पर हाल ही में ARAI (Automotive Research Association of India) के डायरेक्टर ने बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि भारत को “country-specific automotive regulations” की ज़रूरत है, न कि पश्चिमी देशों के “Western standards” को आंख मूंदकर अपनाने की।
भारत की अलग ज़रूरतें, अलग परिस्थितियाँ
ARAI डायरेक्टर के अनुसार, भारत का भौगोलिक, आर्थिक और ट्रैफिक स्ट्रक्चर पश्चिमी देशों से बिल्कुल अलग है। यहां सड़कें, ट्रैफिक की स्थिति, मौसम और ईंधन की गुणवत्ता – सब कुछ विशिष्ट है। इसलिए, भारत में लागू होने वाले vehicle safety norms और automotive regulations भी भारत की वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में विकसित नियम वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर और ड्राइविंग कंडीशन के हिसाब से बनाए जाते हैं। अगर वही नियम भारत में सीधे लागू किए जाएँ, तो कई बार वे न तो व्यावहारिक साबित होते हैं और न ही आर्थिक रूप से संभव।

भारतीय automotive regulations के लिए नई दिशा
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन चुका है। ऐसे में अब समय आ गया है कि देश अपने Indian automotive regulations तैयार करे जो स्थानीय जरूरतों, सुरक्षा और स्थिरता पर आधारित हों।
ARAI डायरेक्टर ने यह भी कहा कि “हमारे पास तकनीकी क्षमता और रिसर्च की ताकत है जिससे हम अपने मानक खुद तय कर सकते हैं।” इससे भारतीय ऑटो उद्योग न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि निर्यात के क्षेत्र में भी नई ऊँचाइयाँ छू सकेगा।
पश्चिमी मानकों की सीमाएँ
पश्चिमी देशों में लागू कई vehicle safety standards जैसे कि हाई-स्पीड क्रैश टेस्ट, ऑटोमेटिक ड्राइविंग असिस्ट सिस्टम्स और एडवांस्ड इमिशन कंट्रोल टेक्नोलॉजी, भारत जैसे देशों के लिए तुरंत अपनाना मुश्किल है।
एक ओर ये तकनीकें महंगी हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में कारों की औसत कीमत और ग्राहकों की क्रय क्षमता भी सीमित है। ऐसे में, बिना सोचे-समझे इन मानकों को लागू करने से वाहन उद्योग पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ सकता है।
भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप समाधान
ARAI के डायरेक्टर का मानना है कि भारत को “ग्लोबल बेंचमार्क्स” से प्रेरणा लेनी चाहिए, लेकिन उन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार ढालना होगा। उदाहरण के तौर पर –
- भारतीय सड़कों के हिसाब से low-speed impact safety tests को प्राथमिकता देना
- ग्रामीण इलाकों के लिए टिकाऊ और किफायती वाहनों पर ध्यान केंद्रित करना
- भारतीय मौसम और ईंधन गुणवत्ता के अनुसार इंजन डिजाइन तैयार करना
आत्मनिर्भर भारत की ओर एक कदम
यह बयान “Atmanirbhar Bharat” (Self-Reliant India) की सोच को भी मजबूत करता है। अगर भारत अपने वाहन नियम खुद बनाए और उन्हें लागू करे, तो इससे न केवल Indian auto industry में नवाचार बढ़ेगा बल्कि विदेशी निर्भरता भी कम होगी।
निष्कर्ष
ARAI डायरेक्टर का यह बयान भारतीय ऑटो उद्योग के लिए एक नई दिशा दिखाता है। भारत को अब “कॉपी-पेस्ट” रेगुलेशन की जगह “इनोवेशन बेस्ड” नीतियों की ओर बढ़ना होगा। अगर ऐसा हुआ, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल सस्ते वाहनों का बल्कि स्मार्ट, सुरक्षित और सस्टेनेबल automotive ecosystem का भी वैश्विक केंद्र बन सकता है।